Monday, May 1, 2017 | 10:53:00 PM
“हाथ की लकीरें”
मैं अक्सर ये सोचती हूँ…
टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ
जो हाथों पर बनी होती हैं,
क्या मनु-जीवन की तारें
उन्हीं पर तनी होती हैं ?
श्रम करने वालों की लकीरें
क्या एक जैसी होती हैं?
बिना परिश्रम जो अमीर हो जायें,
उनकी लकीरें कैसी होती हैं ?
ऊपर- नीचे खिंची रेखाएँ
क्या उतार-चढ़ाव दिखाती हैं?
या फिर कर्मों से मिलकर
हर इन्सान की किस्मत बनाती हैं?
मानव के हाव-भाव, कार्य, व्यवहार
लकीरें बनकर हाथों में ढलते हैं
जो जैसे कर्म करता है, वैसे ही
परिणाम उसके जीवन में पलते हैं।
मनुष्य पढ़ते भी हैं लकीरें,
न जाने क्या पाठ पढ़ाती होंगी ?
शायद दुष्कर्मों को सजा सुनाकर
सत्कर्मों के चाक पर चढ़ाती होंगी।
बड़ी अजीब होती हैं ये रेखाएँ,
मुश्किल बहुत है इन्हें समझना,
कभी छलें, कभी साथ दे दें ये,
आसान है क्या इन्हें कर्मों से परखना?
रेखाओं की यह भूलभुलैया,
जीवन की दिशा बताती हैं क्या?
सचमुच सत्कर्मों की मेहनत,
बिगड़ी तकदीर बनाती हैं क्या?
अक्सर मैं यह सोचती हूँ….।
अर्चना अनुप्रिया।
Posted By Archana Anupriya